अमीरों का एक शहर था Hindi sad poetry

अमीरों का एक शहर था Hindi sad poetry

 

जहाँ गरीबी रोया करती थी
हर चेहरे पे मुस्कान थी
उदासी कहीं दूर बैठा करती थी
मुस्कानों की बहन “हँसी” भी थी
उदासी का सगा भाई “रोना” गाँव की पुलिया पे बैठा करता था
रोना इनका मुक्कदर बन गया था
इनके लिए हर किसी का दरवाजा बंद  हो गया थामेरे दरबार में कोई पहरेदार ना था

दरवाजा मेरा खुला रहता था
बादशाहों में मेरा भी नाम था
डर मुझसे काँपता रहता था

तुम क्या करोंगे खुद की निलामी

बर्बादी में भी हमने खुद को हँसाया था
कुछ नहीं में भी, हमने पुड़ी और पकवान बनाया था

गरीबी के सारे रिस्तेदारों को,  हमने दावत पे बुलाया  था
और फिर एक मीठा जहर खिलाके सबको सुलाया था
अमीरों का एक शहर था Hindi sad poetry

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