उसकी माँ कोई और थी Hindi sad poetry

 Hindi sad poetry

उसकी माँ कोई और थी
वो पड़ोसी मेरा भाई था
भूख की मच्छरदानी में सोता था
आँखें, मैं उससे नहीं मिलाता था
लोगों की ही तरह
इंसानियत का नकाब मैं भी पहने हुए था
नज़रें मेरी बिगड़ने लगी थी
कमीयां उसकी नज़र आने लगी थी
लोगों के आंसूओं की आहट का कोई खबर नहीं था
दिल को यूँही पत्थर बनाये बैठा था
ये रूठने और मनाने के सिलसिले का एक पाठ था
लेकिन मैं इस सब्जेक्ट में बुरी तरह से फेल था
हर जगह जाके मै कैद हो जाता हूँ
जो हूँ वो नज़र नहीं आता हूँ
कोई शिकायत उसे नहीं थी
वो अपनी मुस्कान से जाहिर कर देता था
समझदारी उसके पैरों में रहती थी
धर्म – जाति का चोला उसके पास नहीं था
उसकी माँ कोई और थी Hindi sad poetry

2 thoughts on “उसकी माँ कोई और थी Hindi sad poetry”

  1. कोई शिकायत उसे नहीं, ये मुस्कान उसकी ज़ाहिर करती है। … बहुत अच्छा

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