कश्ती Hindi motivational poetry
Hindi motivational poetry
हजारों को सर पे लेके चलती हूँ
ऐसी मैं एक कश्ती हूँ
कोई डूब ना जाए जिससे मैं डरती हूँ
फिर भी मैं लहरों के सर पे ही रहती हूँ
किनारे दर किनारों पे रुक जाती हूँ
बीच भंवर में मैं मस्ती से चलती हूँ
लोग बैठे मुस्कुराते हैं
और मैं लहरों की हर एक चोट छुपाये फिरती हूँ
अँधेरी रातों में अकेली हो जाती हूँ
ये देख आसमां नीचे आ जाता है
बगल में हँसता चाँद बिगड़ जाता है
करवटें जब भी मैं बदलती हूँ
हजारों को सर पे लेके चलती हूँ
ऐसी मैं एक कश्ती हूँ
कश्ती Hindi motivational poetry
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