दर्द हो तो गाने लगते हैं Hindi sad poetry

 

 Hindi sad poetry

दर्द हो तो गाने लगते हैं |

थोड़ी सी चोट पे आंसू बहाने लगते हैं ||

भाई ये एक दो दिन की लड़ाई नहीं है |

इसमें ज़माने लगते हैं ||

कमज़ोर समझ के सताने लगते हैं |

रुतबा हो तो हाथ मिलाने लगते हैं ||

खुद के बातों पे जब ऐतबार नहीं होता |

अपने ही लब्ज़ों को मिटाने लगते हैं ||

बर्बादियों के निमंत्रण में मैख़ाने लगते हैं |

पैसे  ज़्यादा हों तो कपडे पुराने लगते हैं ||

ये कल के लोग रिश्तों को क्या जाने |

थोड़ी हैसियत में ही इतराने लगते हैं ||

आसमां की गहराइयों में परिंदे मुरझाने लगते हैं |

औकात से ज़्यादा मिले तो लोग पगलाने लगते हैं ||

बिना हुनर के लहरों से मत टकराना |

वो पत्थरों को भी रेत बनाने लगते हैं ||

(दर्द हो तो गाने लगते हैं Hindi sad poetry)

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