मुझपे ना घर वालों का भरोसा है Hindi sad kavita

मुझपे ना घर वालों का भरोसा है

 Hindi sad kavita

 

मुझपे ना घर वालों का भरोसा है
ना मुझपे मेरे दोस्तों का भरोसा है
किस भरोसे पे मैं दुनिया से लडूं
खड़े तो सभी हैं पर साथ कोई नहीं है
लड़खड़ा के कई बार गिर सा जाता हूँ
हौसले इतने हो जाते हैं,  कि कभी-कभी उनसे भी हार सा जाता हूँ
चेहरा ही मेरा बदसूरत सा है
मैं दिल का थोड़ा अच्छा भी हूँ
अपने काम से काम रखता हूँ
फिर भी हर किसी के सक के दायरे में रहता हूँ
ले लो  मेरी तलासी
अगर यकीं ना हो मुझपे तो
जला देना इन रिश्तों को
अगर मैं अपने चेहरा पे कोई पर्दा रखता हूँ तो
मैं तुम्हें समझा नहीं सकता
तुम्हारे हाँ को कभी नकार नहीं सकता
बहुत संभल के जीना पड़ता है
लोगों के यकीं के छत पे रहना पड़ता है
मुझपे ना घर वालों का भरोसा है Hindi sad kavita

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