मैं इंसानों पे यकीं नहीं करती
तूं जो भी है मेरे पन्नों पे लिखा है
मुझपे किसी की हुकूमत नहीं, हवा हूँ
इन पत्थरों में है अगर ईश्वर
तो इनकी जुबां भी होगी
तू बात कर या ना कर
ये तुझे जानते भी होगें
मेरी सरसराहट क्या सिर्फ मेरी दौड़ने की आवाज है
मैं नहीं मानती की मुझमे जुबान नहीं है
तूं समझ जा तो अच्छा होगा
तेरी साँसे मेरी मुट्ठी में है , हवा हूँ
मेरी नज़रें सबपे है
मुझसे कुछ छुपा नहीं है
तुम संभल कर रहना
मैं रिश्वत नहीं लेती
जब तूं कटघरे में आयेगा
तेरा हर एक जुर्म खोल के रख दुंगी
मुझे किसी गवाह की जरुरत नहीं
मैं झूठ नहीं बोलती, हवा हूँ
सारी किताबें झूठी हैं | Hindi kavita
Bahut badhiyan bhai