चेहरा देखे हुए ज़माना हो गया Hindi romantic poem
Hindi romantic poem
चेहरा देखे हुए ज़माना हो गया
नक़ाबों में इंसानों का रहना हो गया
खुद को इतना शातिर ना समझों
कमियां छुपाने का दौर अब पुराना हो गया
रूठे हुए बारिशों के बाद अब मौसम सुहाना हो गया
जहाँ लोग जाने से डरते थे वहां आज मैखाना हो गया
सिद्दत से निभाया था दरबारी का काम वो
पूरे दरबार में आज उसी का मालिकाना हो गया
ऐसी ही थी उसकी खूबसूरती की मैं दीवाना हो गया
ना चाहते हुए भी उसके दर्द पे मुस्कुराना हो गया
बस इतने ही खिस्से से पछताना हो गया
अब हम दोनों का अलग-अलग आना-जाना हो गया
“चेहरा देखे हुए ज़माना हो गया Hindi romantic poem”
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