खिलता है और गिर के खो जाता है Hindi sad poetry

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Hindi sad poetry

 

खिलता है और गिर के खो जाता है

काँटों के बीच में वो मुस्कुराता है

मोहब्बत पे उसकी बलि चढ़ती है

कैसा है ये मैयत पे भी नज़र आता  है

 

अंगारों में तप के दीयों का गुज़रना होता है

सीने में आग जला के रौशनी बिखेरना होता है

कोई देख ना ले पैरों के नीचे का अँधेरा

दीयों को ये भी छुपाना होता है

 

छतों को कहीं और नहीं जाना होता है

दीवारों पे लेट के एक आशियाँना बनाना होता है

बारिश, धूप, अँधेरा कितना भी हो

घरों की खुशियों में थोड़ा मुस्कुराना होता है

खिलता है और गिर के खो जाता है Hindi sad poetry

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