कुछ गल्तियाँ हमने भी की हैं Hindi sad poetry
Hindi sad poetry
कुछ गल्तियाँ हमने भी की हैं
पूरा वफादार नहीं हैं हम
औकात हमारी भी थी उसे संभाल ने की
लेकिन नज़रें छुपा के निकलें भी हैं हम
तारीफें तो बहुत मिली हैं
कई बार अपनी नज़रों में गिरे भी हैं हम
जब – जब किसी को लूटने की कोशिश किया है
कई बार सरेआम लूटें भी हैं हम
हर कोई समझाने में लगा है की वो झूठा नहीं है
झूठ वफ़ादारों के गले में लटकते देखे भी हैं हम
जो कहते हैं बेंच दुंगा सारे आम सबको
उन्हें ही हर जगह बिकते देखे भी हैं हम
कुछ गल्तियाँ हमने भी की हैं Hindi sad poetry
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