अपने चहरे पे पर्दा नहीं रखती हूँ | Hindi romantic poetry
Hindi romantic poetry
अपने चहरे पे पर्दा नहीं रखती हूँ
जैसी हूँ, वैसी ही नज़र आती हूँ
आसमा की तरह नहीं हूँ
की हर तरफ गिरती हुई नज़र आउँ
हाँ कमजोर है मेरे प्यार की दीवार
जो हर कोई तोड़ के निकल जाता है
और तोड़ने वालों से कह देना कोई
ये हमारा दिल है हमेसा खुला रहता है
तुम्हे क्या लगता है, हम मर जायेगें
तुम जिसके भी करीब जाओगे, हमीं याद आयेंगे
और रहने दो मत बचाओ उन रिश्तों को
जिनमे “यकीन” ना हो ……..
वो पत्ते हमेशा बिखर के खो जाते हैं
जो डालियों से अलग हो जाते हैं
दिल भर जाये जो तुम्हारा उस तरफ
तो लौट आना मेरे आशियाने की तरफ
ये मेरे रिश्ते हैं
यहाँ नफ्रतें जरा देर से आती हैं
अपने चहरे पे पर्दा नहीं रखती हूँ | Hindi romantic poetry
Writer
Waah waah, kya baat hai.