मेरी नज़रों की बात ना कर | Hindi romantic poem

Hindi romantic poem

 

मेरी नज़रों की बात ना कर
खुद  पे भी तो गौर कर
हर जुर्म मेरा ही क्यूँ
कदम तो तेरे भी ना रुके इस राह पे
करीब आना अगर मेरी गलती थी
तो दूरियाँ तुमने क्यों नहीं बढाया
वो रातें  यादगार हुई तो क्या
इसमें साथ तेरा भी तो था
अब बात छोड़ो भी लोगों की
मैं किसी के जुबां  पे पहरा नहीं देता हूँ
ज़िन्दगी सिर्फ तारीफों से भरी नहीं है
गाली मिले तो उसका भी स्वागत कर लेता हूँतुम्हे लगता है की हमारा प्यार बदनाम हो रहा है
तो हो जाने दो
शोहरत का ये भी एक पहलू है
बस खुश इतने से रहो
की हर किसी की जुबां पे अपना नाम तो जिंदा रहेगा

मेरी नज़रों की बात ना कर | Hindi romantic poem

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