एक बार फिर रंगों से मुलाकात हुई | Hindi festival poem

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 Hindi festival poem

एक बार फिर रंगों से मुलाकात हुई
बातों का सिलसिला तेजी से चला
फिर ना जाने क्यों रुक-रुक के ख़त्म तक पहुँच गयी
मैंने एक रंग से पूछा
कैसे हो बहुत दिन के बाद मुलाकात हुई
मुस्कुराते हुए उसका बयां था
हाँ आज के ही दिन हमारी जनसंख्या बड़ती है
और आज के ही दिन कम भी हो जाती है
आज के ही दिन हम लोगों के सर से सरकते हुए
पाँव के निचे चले जाते हैं
उसने मुझसे भी पूछा
की तुम बताओ, तुम्हारी उम्र तो
60-70 साल से भी बड़ी होती है
तुम लोग तो बहुत कुछ कर लेते हो
लेकिन फिर भी अंत में तुमलोग भी
पाँव के नीचे ही दफ़न हो जाते हो
क्या रिश्ता है इस जमीन से
जो हर कोई इसी में जाके मिल जाता है
और मुस्कुराते हुए वो रंग मेरे हाथों से नीचे गिर गया
उसका रंग हरा था
वो गिरते हुए कहा
होली मुबारक हो ………………………….
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