Hindi kavita
ये तुम्हारी ना समझ है
की जहाँ मैं जाती हूँ
वहां से वो चला जाता है
मैं अंधेरों से नफ्रत नहीं करती हूँ
रोशनी हूँ, रोशनी का धर्म निभाति हूँ
तुम्हे लगता है जिस महफ़िल में वो आता है
मैं उस महफ़िल को छोड़ देती हूँ
ये दूरियां दिखावे की है
मैं हर जगह उसके पास रहती हूँ
तुम ध्यान से देखना
वो मुझमे कहीं रहता है
और ये उसका हुनर है
कि मैं उसमे जगमगाती हूँ
जहाँ मैं ख़त्म होती हूँ
वहीँ से वो शुरू होता है
मेरा दिन थका देता है सबको
सुकून बेचती है उसकी रातें
ये तुम्हारी ना समझ है Hindi kavita
Writer
Lajwaab
बहतरीन