सोते – सोते जगा देता है | Hindi kavita
Hindi kavita
सोते – सोते जगा देता है |
कोई धीरे से कंकड़ फेंक देता है ||
ना चाहते हुए भी हर चीज को समेट लेता हूँ |
शायद ये तालाब ही की फकीरी है ||
मुझे कोई कुछ रखने को ना देना |
मछुवारे मुझे हर रोज़ लूट ले जाते हैं ||
मछुवारे मुझे हर रोज़ लूट ले जाते हैं ||
प्यार सिर्फ बच्चों का ही मिलता है |
हर रोज़ नहाने आते हैं ||
जून की गर्मी मुझे ना जाने क्यूँ सुखा देती है |
परिंदों की प्यास भी बुझा नहीं पाता हूँ ||
मेरे अंदर जो जीते हैं |
एक – एक करके मरते जाते हैं ||
पूरी तरह मैं खत्म नहीं होता हूँ |
कहीं एक बूँद में खुद को जिन्दा रखता हूँ ||
लौट आती है वो जवानी |
जब सावन दिख जाता है ||
बच्चों की हंसी में खुद हंस लेता हूँ |
सिर्फ मछुवारों से ही डरता रहता हूँ ||
सोते – सोते जगा देता है | Hindi kavita
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