इश्क का शहर Hindi romantic kavita
इश्क का शहर
मेरी बस्ती से नज़र आया नहीं
शाम गुज़रे जमाना हुआ
नीद फिर भी नज़र आयी नहीं
लोग खुद में ही उलझते रहे
मुझमे देखने वाला कोई आया नहीं
चेहरे की मुस्कान से ही वो लौट गए
इस दीवार को तोड़ने वाला कोई आया नहीं
शब गुज़रती रही मेरी उम्मीदों पे
सिर्फ उनका आना ही काफी नहीं
माना की इजहार का हुनर ना था मेरे पास
वो तो समझदार थे, खामोश क्यों चले गये
रात भी जली, दिन भी जला
मेरा सारा ख्वाब भी जला
वादा भी नहीं हुआ
इंतज़ार के पास जाने की वजय ही नहीं
इश्क का शहर Hindi romantic kavita
Writer
Sateek lines with dhasoo pic