अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है Sad poem

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अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है Sad poem

अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है
वो आईना हैं उसपे यकीं करता है
कोई पूरा ईमानदार नहीं होता
आइनों के पीछे चेहरा नज़र नहीं आता
अगर तुम कुँओं तालाबों में भी झाँकोंगे
चेहरे की चमक वो दिखा नहीं पाते
कोई हुई हलचल अगर उनके अन्दर
तो अपने चेहरे को बर्बाद होते पाओगे
लोग कहते हैं आईना ईमानदार होता है
लेकिन इंसान हूँ खुद को कहाँ यकीं होता है
मैं जानता हूँ मैं हार जाऊँगा, उसके जैसा कोई और नहीं
जिससे वो नाराज़ हो गया, वो खुद को पहचान नहीं पाते
वो किसी से डरता नहीं हैं
आँखों से आँखें मिला के बात करता है
उसके घर में सबकी रिश्तेदारी  है
चेहरा बदलने का उसका कारोबार जारी है
अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है
वो आईना है उसपे यकीं करता है
अपने चेहरे पे सबका चेहरा बनाता है Sad poem

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