लोग मुझे पत्थर कहते हैं Hindi sad poem

पत्थर

लोग मुझे पत्थर कहते हैं Hindi sad poem

जरा सी ठोकर में तुम बिगड़ जाते हो
हजारों लोग मेरे उपर से गुजर जाते हैं
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं
विनम्रता का सूत्रधार हूँ मैं
लोग थूक जाते हैं  उपर
जूते-चप्पल साफ कर जाते हैं उपर
फिर भी कुछ नहीं कहता हूँ मैं
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं
तुम्हे छत के नीचे भी सुकूं नहीं मिलता
मैं धुप में तपता हूँ, ठण्ड में गलता  हूँ
लहरों की चोटें खा-खा के जीता हूँ
फिर भी कुछ नहीं कहता हूँ
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं
हवाओं में कितना भी जहर हो जाये
उसके मेरे बीच कोई दिवार नहीं हो सकती
बहुत जल्द भाग जाओगे तुम चन्द्रमा पे
मेरा पैर हैं जिसपे मैं उसे छोड़ नहीं सकता
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं
रात चूहे डरा देते हैं
सांप – बिच्छू सर पे बैठ जाते हैं
आज तुम्हारे कहने पे बोला हूँ
वर्ना आजीवन मौन रहता हूँ
दिल मुझमे भी है
 लोग मुझे पत्थर कहते हैं
लोग मुझे पत्थर कहते हैं Hindi sad poem

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