शहरों में अँधेरा डर सा जाता है Hindi sad poetry

शहरों में अँधेरा डर सा जाता है Hindi sad poetry

शहरों में अँधेरा डर सा जाता है
छुप के किसी कोने में, अपने जैसे को ढूढ़ता है
रोशनी हंसती है
मगर उसे नहीं पता कोई रोता है
यहां घरों में  खुशीयाँ  दौड़ती है
मुस्कान हर किसी के चहरे पे होती है
दहशत तो उन घरों में होता है
जहाँ छत के निचे बारिश होती है
तुम्हे चावल – दाल की फिक्र कहाँ
तुम तो हजारों का पटाका जला देते हो
हमसे पूछों, कई दिनों तक बिना तेल की सब्जी खा के
हम  दीवाली मनाते हैंतुम तो कपड़ों के मुरझाने पे ही उन्हें फेंक देते हो
ज़िन्दगी भर का साथ तो हम निभाते हैं
साबुन में झाग मिले या ना मिले
हम तो पानी से ही धुल के काम चलते हैं

और रहने दो ये दिखावे  की वफादारी
भिखारियों को तो तुम दूर से ही सलाम करते हो
और बच के रहना वक्त के लहरों से
ये जिससे रूठ जाता है उसे अपने भी नहीं पहचानते हैं

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