कांच के भीतर, वो कैद था
बैठे मुझको देख रहा था
मुस्कान देख, मैंने उनको खरीद लिया था
अब हर रोज वो मुझे
अपने सर पे लेके चलते हैं
तपती धुप में मेरे तलवों को बचाते रहते हैं
कंकड़ – पत्थर और काँटों को
अपने अंदर समेटे जाते हैं
और आपस में चिट – पिट , चिट – पिट बातें करते रहतें है
शायद अपने जख्मों को बांटा करते हैं
मैं अंजान उनके दर्दों से
केवल चलता रहता हूँ.
पहले वो कितने मोटे थे
पतले हो गए हैं अब घिस घिस के
रोज दरवाजे के बाहर रखता हूँ
सर्दियों में भी अंदर नहीं लाता हूँ
कभी पूछता भी नहीं की क्या हाल है तुम्हारा
एक सुबह उठ के देखा
बाएं पैर वाला ना दिखा
मैं दायें वाले से पूछा
उसने कोई जबाब नहीं दिया
मैंने गलियों में देखा
कई घरों के दरवाजों पे देखा
ना जाने वो कहाँ गया
कहीं पड़ा वो नहीं दिखा
मैं घर को अब वापस आया
दायें वाले के आँखों में कुछ अजीब सा पाया
लेकिन बारिश की बूंदें उन्हें दिखने नहीं दिया
काफी देर तक मैं उसे देखता रहा
वो जान गया था की, अब मैं इसके काम का ना रहा
कूड़े में फेंक देगा या दरिया में बहा देगा
ये आदिवासी तो नहीं होगा
कि किसी दुसरे के साथ मुझे जोड़ देगा
रिश्ता किसी से भी हो किसी का,
एक दिन वो तोड़ जायेगा
वो चप्पल कुछ ऐसा था Hindi motivational poetry
Writer
बहॊत ख़ुबसूरत उम्दा। हर चीज़ का हमसे रिश्ता हैं ग़र गौर करें तो दिखता है। लगे रहो । शुभकामनाएं।
Bas yahi to ham nhi krte .
Hame sabhi se baat krni chahiye
Adbhut adbhut adbhut
Awesome dude
Very Beautiful lines 👌