नमामि शिव शंकरम स्तुति
नमामि शिव शंकरम स्तुति
नमामि शिव शंकरम स्तुति का हिंदी अनुवाद :
हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित), गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ।॥१॥
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।॥२॥
जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,जिनके सर पर सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।॥३॥
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं, सिंहचर्म धारण किये व मुंडमाल पहने हैं, उनके सबके प्यारे, उन सब के नाथ श्री शंकर को मैं भजता हूँ।॥४॥
प्रचण्ड (रुद्र रूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दु:खों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकर को मैं भजता हूँ।॥५॥
कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत(प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन, मोह को हरने वाले, प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।॥६॥
हे माता पार्वती के पति, जबतक मनुष्य आपके चरण कमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में न परलोक में सुख शान्ति मिलती है और न ही पापों का नाश होता है। अत: हे समस्त जीवों के अंदर (हृदय में) निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये।॥७॥
मैं न तो जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे प्रभो, बुढ़ापा व जन्म [मृत्यु] दु:खों से जलाये हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें। हे ईश्वर, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।॥८॥
भगवान रुद्र का यह अष्टक उन शंकर जी की स्तुति के लिये है। जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं, श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं।
नमामि शिव शंकरम स्तुति और इसके बारे में कुछ खास बातें :
‘नमामि शमिशान निर्वाण रूपं’ भगवान शिव का बहुत ही प्यारा और चर्चित भजन है | इसे रुद्राष्टकम मंत्र के नाम से भी जाना जाता है | इसे गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा था | यह रामचरितमानस के उत्तरकांड में है | रुद्राष्टकम में भगवान शिव की आठ तरह की स्तुति, तारीफ़, और शक्ति के बारे में बताया गया है | रुद्राष्टकम का पाठ करने से महादेव प्रसन्न होते हैं | कहा जाता है कि इस स्तुति के पाठ से आरोग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है | नियमित रूप से रुद्राष्टकम का पाठ करने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है | महाशिवरात्रि पर रुद्राष्टकम का पाठ करना बहुत कल्याणकारी माना जाता है |
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